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________________ बड़े-बड़े फणों के मण्डल रूप के द्वारा उसी प्रकार वेष्टित कर लिया था जिस प्रकार काली संध्या के समय बिजली से युक्त मेघ पर्वत को वेष्टित कर लेता है। जब कमठ के जीव शम्बर नामक देव ने ध्यानमग्न पार्श्वनाथ पर पूर्व वैर के कारण भयंकर उपसर्ग किया तब पूर्वकृत उपकार के कारण धरणेन्द्र नामक भवनवासी नागकुमार जाति के देव ने विक्रिया द्वारा नाग का रूप बनाया। उस नाग के बड़े-बड़े फण थे। उसने उन फणों का मण्डलाकार मण्डप बनाया और उसे ध्यानमग्न पार्श्वनाथ पर तान दिया। ऐसा करके धरणेन्द्र ने भयंकर आंधी, वर्षा आदि के उपसर्ग को दूर करने में सहयोग किया। ७. नाग-नागिन की मृत्यु कैसे हुई जब पार्श्वनाथ १६ वर्ष के थे तब उनको एक अनुचर से ज्ञात हुआ कि वाराणसी के निकट एक उपवन में एक तापस पञ्चाग्नि तप कर रहा है। पार्श्वकुमार ने अवधिज्ञान से जान लिया कि यह तापस कमठ का ही जीव है। तब उसे देखने की इच्छा से तथा उसको कुतप से विरत करने की भावना से पार्श्वकुमार हाथी पर बैठ कर उपवन में पहुँचे। वहाँ जो तापस पञ्चाग्नि तप कर रहा था वह पार्श्वनाथ का नाना अर्थात् माता का पिता महीपाल था। वह पञ्चाग्नि तप में लीन था। इस तप में तापस अपने चारों और अग्नि जला कर उसके बीच में बैठ जाता है और उसकी दृष्टि ऊपर सूर्य की ओर रहती है। इसे पञ्चाग्नि तप कहते हैं। आचार्य गुणभद्र के अनुसार वह तापस अग्नि में डालने के लिए एक मोटी लकड़ी को काट रहा था। यह देख कर पार्श्वकुमार ने उस तापस से कहा कि इस लकड़ी को मत काटो। इसके अन्दर नाग-नागिन बैठे हैं। किन्तु वह तापस नहीं माना और उसने लकड़ी को काट डाला। तब लकड़ी को काटते समय उसके अन्दर बैठे हुए नाग-नागिन के दो शङ्केश्वर तीर्थ 111
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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