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________________ प्रतिमाओं को गुप्त रखा गया । फिर उदयरत्नसूरिजी महाराज चतुर्विध संघ के साथ शंखेश्वर पधारे। उस समय ठाकुर के पास रखी प्रतिमा दर्शन हेतु देखनी चाहिए। किन्तु ठाकुर द्वारा मना कर दिया गया । तब उन्होंने अन्नजल त्याग कर दिया। मुनि द्वारा त्याग के पश्चात् प्रतिमा के दर्शन करवाये व पुनः प्रतिष्ठा करवायी तब म. सा. ने आहार- पानी ग्रहण किया । भक्तिपूर्वक प्रार्थना करते हुए पास शंखेश्वरा सार करे सेवका, देवकां ? एवडी वार लागे, कोटि कर जोडी दरबार आगे बढा ठाकुरां चाकुरां मान मांगे। प्रार्थना पूर्ण होते-होते चमत्कार हुआ। चारों तरफ प्रकाश फैल गया। लोगों की आँखें थोड़ी देर के लिए चौंधिया गयीं। सब ने प्रभु की प्रतिमा का दर्शन किया। सभी बहुत प्रभावित हुए । विजयप्रभसूरिजी के उपदेश से तीर्थ पर जीर्णोद्धार हुआ । वर्तमान झिंझूवाडा के राजा को कोढ हुआ था तब इस बीमारी से मुक्ति हेतु राजा द्वारा वहाँ के सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की आराधना की जिससे सूर्य भगवान ने प्रसन्न हो राजा को स्वप्न में प्रकट होकर कहा कि तुम्हारा रोग असाध्य है अतः तुम शंखेश्वर पार्श्व की आराधना करो । राजा शंखेश्वर सादर हृदय से आराधना करता है तभी रोगमुक्त हो जाता है । तब दुर्जनशाल ने भी उक्त पार्श्वनाथ चैत्यालय का जीर्णोद्धार कराया। यह बात जगडूचरितमहाकाव्य से ज्ञात होती है । चौदहवीं शती के अन्तिम दशक में अलाउद्दीनखिलजी ने इस तीर्थ को नष्टप्राय कर दिया था। इसी का एक और वृत्तान्त प्राप्त होता है :- पूर्णिमागच्छ के आचार्य श्री परमदेवसूरीजी श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवन्त के आराधक थे। उन्होंने श्री वर्द्धमान आयम्बिल तप की १०० ओली पूर्ण की थी एवं श्री संघ में विघ्न त्रितीर्थी 102
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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