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________________ ५७ प्रथमपरिवेद. नौली नोमी, अहवा दशमी, व्रतअग्यारशी, वववारशी. धनतेरशी, अनंतचनदशी, अमा वाल्या. आदित्यवार, उत्तरायण नैवेद्य कीधां. नवादक, याग, नोग, नतारणां कीधां, कराव्यां अनुमोद्या. पिपले पाणी घाल्यां, घलाव्यां; घ स्वादिर दत्र; खल, कूवे, तलावे, नदीये, उदे वाविये. समुझे, कुंमे, पुण्यदेतुस्नान कीधां, करा व्यां अनुमाद्यां. दान दीधां, ग्रहण, शनिश्चर मादमासें नवरात्रि, नाहायां. अजाणना थाप्यां अनराइवत व्रतोलां कीधां; कराव्यां ॥ विति गिठा धर्म संबंधीयां फलतणे विषे संदेह की घो जिन अरिहंत धर्मना आगर, विश्वोपकार सागर, मोदमार्गना दातार, इस्या गुणनणी न मान्या, न पूज्या, महासती, माहात्मानी इह लोक परलोक संबंधी यानोग वांख्ति, पूजा की धी, रोग. आतंक कष्ट आवे खीण वचन नोग मान्या, माहात्मानां नात, पाणी, मल शोना तणी निंदा कीधी, कुचारित्रिया देखी, चारित्रि या नपर कुनाव हु, मिथ्यात्वी तणी पूजा प्र भावना देखी प्रशंसा कीधी, प्रीति मांडी, दा KET
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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