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________________ जैनधर्मसिंधु. ___ तत्र झानाचारें आठ अतिचार ॥ कालेवि णए बहुमाणे, उवहाणे तदय निन्दवणे॥ वंज ण अब तउनए अविदोनाण मायारो॥१॥ झान काल वेलाये नण्यो गुण्यो नहिं अकाले जण्यो, विनयदीन, बहुमानहीन, योगनपधान हीन, अनेरा कन्हें नणी अनेरो गुरु कह्यो, देव गुरु वांदणे, पडिक्कमणे, सद्याय करतां नणतां, गुणतां, कूमो अदर कानेमात्रायें अधिको उंगे नण्यो, सूत्र कूड़े का, अर्थ कूडो कह्यो, तउन्न य कूडां कह्यां, नणीने विसाखां, साधु तणे धर्म काजें काजो अमन हरयां दांडो अणपमिलेदे, वसति अणशोधे, अणपवेसे, असफाइ, अणो काश्माहे श्री दशवैकालिकप्रमुख सिद्धांत नयो गुण्यो, श्रावकतणे धर्मे थिविरावलि, प डिक्कमणां, उपदेशमाला प्रमुख सिद्धांत नण्यो गुण्यो, काल वेला काजो अणनस्से पढियो झानोपगरण, पाटी, पोथी, उवणी, कवली, नोकरवाली, सापमा सापमी, दस्तरी, वही, उलिया प्रमुख प्रत्ये पग लाग्यो, थूक लाग्यु, थूके करी अदर मांज्यो, उशीसें
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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