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________________ जैनधर्मसिंधु. हुई शय्याके ऊपर, शय्याके उपकरणसहित, शबको स्थापन करना। यहांगृहस्थके मृत्युनदत्रके नक्षत्रपूत लेका विधान, कुशपुत्रादिविधि यतिकीतरें जानना.नवरं कुशपुत्रक गृहस्थवेषधारी करणे 8 वर्णानुसार तिसके ऊपर नानाविध वस्त्र सुवर्ण मणि विचित्र वस्त्रका कराप्रासाद (मांमवी)स्थापन करना।पीने स्वज्ञातीय चारजणे परिजनके साथ स्कंधऊपर उगए शबको, स्मशानमें ले जावे.। तहां उत्तरनागमें शबका शिर रखके चितामें स्थापन करके, पुत्रादि अग्निसे संस्कार करे. । श्रन्न नही खानेवाले बालकोंको नूमिसंस्कार करना । तहां प्रेतप्रतिग्राहियोंको दान देना। पीछे सर्व स्नान करके, अन्यमार्ग होकर अपने घरको आवे. तीसरे दिनमें चिताजस्मका, पुत्रादि नदीमें प्रवाह करावे. । तिसके हाम तीर्थों में स्थापन करे। तिसके अगले दिनमें स्नान करके शोक दूर करे. । जिनचैत्योंमे जाके, परिजनसहित जिनबिंबको विना स्पर्श, चैत्यवंदन करे। पीछे उपाश्रयमें आके गुरुको नमस्कार करे. गुरु नी संसारकी अनित्यतारूप * रोहिणी, विशाखा, पुनर्वसु, उत्तराषाढा, उत्तराफागुनी, उत्तरा नाजपद, ए व नत्रमेंसे कोश्नी एक नक्षत्र मरण समय होय तो दनके दो पुतले बनाके नीनामीके साथ रखणा. जेष्टा, आळ, स्वाती, शतभिषा, नरणी, अश्लेषा ए उ नदत्रमेंसें कोइली होय तो पुतले न करना. और उसरे १५ नक्षत्रमेंसें कोइ नत्र होय तो एक पुतला करना.
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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