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________________ २० जैनधर्मसिंधु. ग्लान, शकस्तव पढके तीनवार परमेष्ठिमंत्रको पढके गुरुके मुखसे उच्चरे । यथा. " ॥ नवचरिमं पच्चरकामि तिविहं पि श्राहारं असणं खाश्मं साश्म अन्नबणानोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि॥" इति सागारानशनम् ॥ अंतर्मुहूर्त शेष रहे हूए,निरागार अनशन कराना.॥ यथा ॥ " ॥ नवचरिमं निरागारं पच्चरकामि, सवं असणं, सत्वं पाणं, सवं खाश्म, सवं साश्मं,अन्नाबणानोगेणं, सहसागारेणं, अश्यं निंदामि, पमिपुन्नं संवरेमि,श्रणा गयं पञ्चकामि, अरिहंतसस्कियं, सिसस्कियं, साहु सस्कियं देवसरिस्कयं, अप्पस स्कियं, वो सिरामि ॥" जश मे हुङ पमा, श्मस्स देहस्स श्मा वेलाए ॥ आहारमुवहिदेहं, तिविहं तिविहेण वोसिरियं ॥१॥ तब गुरु “निबारगपारगो होहि" ऐसें कहता हुथा संघसहित वासअक्षतादि ग्लानके सन्मुख देप करे. । शांतिके वास्ते 'अहावयंमि उसहो' इत्यादि स्तुति पढे. और, 'चवणं जम्मणनूमी' इत्यादि स्तव पढे । गुरु निरंतर ग्लानके आगे तीनजुव नके चैत्योंका व्याख्यान करे, अनित्यतादि बारां जावनाका व्याख्यान करे, अनादिनवस्थितिका व्या ख्यान करे, अनशनके फलका व्याख्यान करे। और
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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