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________________ जैनधर्मसिंधु. घाती पंचेंजियघाती है;) (कालज्ञानके विषयमे कितने क शास्त्रोमे एसे लक्षण लिखेहें कि निरंतर पंदरे दिन सूर्यनामी प्रातःकाल वहे तो पनरे दिनका आयु. एक मास तक प्रातःकाल सूर्यनामी वहे तोषट् मासायु. पांचदिन अखंग सूर्य नामी वहे तो मासायु. वायु की नामि पित्तके स्थानमे, पित्तकी नामी कफके स्थानमे,कफ कंठमे आवे तो रोगी वचेगा नही.मस्तक गरम हृदय, नानि, नाशिका हाथ पग ठंडे रहे तो मरण. उश्वास गरम व नीश्वास ठंमा वहे तो मर ए. अंग कंप, गतिनंग, शरीरका वर्णका बदलना, खाद वा गंधकों न समजे तो अवश्य करण जाणना, हाथ पावकी घुटी,कपोल,गलेके पासकीनाडी चलनी रुक जाय वा मंद पमजाय तो मरण कहना. जो अपनी जिव्हाग्र, नासाग्र, चुकुटी, न देखेतो मरण. अपनी तीन अंगुली मुखमें न जावे तो मरण. कुटी न दीखे तो सातदिन, कर्णश्वर न सूने तो पाच दिन कों मरण होना समजना. जिव्हा काली पडे वा, मुख लाल हो जाय तो मरण. पिसाबकी धारामे बिंदु होजाय वा वीर्यपात हो जाय तो सातमे दिन मरण. नामीयोंका मंद पमना, इंजियोंके विषयका न समजना,गतीका नंग होना,कंठमें कफका रुकना, नाशिकाके पवनका ठंमा वहना, नाशिका टेडी होना, जमणी नूजा मे उर्फ श्वासका वहना यह
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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