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________________ अष्टमपरिछेद. तां बुद्धिमाधाय हृदीहकाले, स्नात्रं जिनेंद्रप्रतिमाग स्य ॥ कुर्वति लोकाः शुभभावनाजो, महाजनो येन गतः स पंथाः ॥ २ ॥ यह पढके पुष्पांजलि क्षेप करे ॥ २ ॥ UB परिमलगुणसार सगुणाढ्या, बहुसंसक्तपरिस्फुरद्विरे फा | बहुविध बहुवर्णपुष्पमाला, वपुषि जिनस्य जव त्वमोघयोगा ॥ १ ॥ · यहवृत्त पढके पगोंसें लेके मस्तकपर्यंत जिनप्रति माको पुष्पारोपण करे | पीछे ' कर्पूर सिब्दाधि० ' इसकरके धूपोत्क्षेप करे । पीछे शक्रस्तव पढे । पीछे फिर पुष्पांजलि हाथमें लेके । साम्राज्यस्य पदोन्मुखे जगवति स्वर्गाधिपैर्गु फितो । मंत्रित्वं बलनाथतामधिकृतिं स्वर्णस्य कोशस्य च ॥ बिङ्गिः कुसुमांज लिर्विनिहितो जक्त्या प्रोः पाद यो दुःखौघस्य जलांजलिं सतनुतादालोकनादेव हि || चेतः समाधातुमनिं प्रियार्थं पुएर्य विधातुं गणनाय तीतम् ॥ निक्षिप्यतेत्प्रतिमापदाग्रे, पुष्पांजलिः प्रोज तनक्तिनावैः ॥ २ ॥ यह पढके पुष्पांजलिप करे . । सर्व पुष्पांजलि योंके अंत में धूपोत्क्षेप, और शक्रस्तवपाठ अवश्य करना. ॥ तदनंतर पुष्पादिकरके प्रतिमा पूजे. । पीछे मणि, स्वर्ण, ताम्र, मिश्रधातु, माटीमय, कलशे नाकी चौकीऊपरि स्थापन करना. तिनमें गंगो
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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