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________________ gos श्रष्ठमपरिवेद. यह त्रिपद मंत्र श्रीमत् अर्हन् जगवंतोंके आगे नित्य स्मरण करे. कैसा है मंत्र ? देवलोकादि सुख और मोदका, देनेवाला, सर्व पापोंका नाश करने वाला है.। विशेष इतना है कि, यह मंत्र अपवित्र पुरुषोंने, उपयोगरहित पुरुषोंने, नही स्मरण करना. तथा उच्चशब्दसे नही स्मरण करना, नास्तिकोंको और मिथ्यादृष्टियोंको नही सुनाना.। यह पूर्वोक्त अर्हन्मंत्र एकसौयाउ (१७) वार, वा तदर्ष ५४ वार जपना ॥ पीछे दो पात्रोंमे नैवेद्य धरे. पीले एक पात्रमें जल लेके। ‘उँ अ । नानाषप्रससंपूर्ण, नैवेद्यं सर्वमुत्तमं। जिनाग्रे ढौकितं सर्व, संपदे मम जायतां ॥१॥ यह पढके जलढोकना ॥ फिर दूसरा जल लेके। __“॥ ॐ सर्वेगणेशदेत्रपालाद्याः सर्वेग्रहाः सर्वे दिक्पालाः सर्वेऽस्मत्पूर्वजोन्नवादेवाः सर्वे अष्टनवत्युत्त रशतं देवजातयः सदेव्योऽहनताः अनेन नैवेद्येन संतर्पिताः संतु, सानुग्रहाः संतु, तुष्टिदाः संतु, पुष्टि दाः संतु, मांगल्यदाः संतु, महोत्सवदाः संतु ॥” ऐसें कहके दूसरे नैवद्यके पास जल ढोकन करे. ॥ यो जन्मकाले पुरुषोत्तमस्य, सुमेरुशृंगे कृतमङनैश्च ॥ देवैःप्रदत्तःकुसुमांजलिस्स,ददातुसर्वाणिसमीहितानि राज्याभिषेकसमये त्रिदशाधिपेन । बत्रध्वजांक तलयोः पदयोर्जिनस्य ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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