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________________ जैनधर्मसिंधु. स्थादिवंदनका परिहार करना. शंकादि पांच अतिचारोंका त्याग करना. राजानियोगादि । (६) कारणोंसें जी यह दर्शन प्रतिमा नही त्यागनी. ॥ शतिदर्शनप्रतिमा. ॥१॥ अथ दूसरी व्रतप्रतिमा, सा, मास दो तक यावत् निरतिचार पांच अणुव्रत पालनविषया, गुणवत ३, शिक्षाव्रत ४, इनका पालना नी साथही जानना. अर्थात् दो मासपर्यंत निरतिचार छादश (१२) व्रतोंका पालना. यहां नंदिक्षमाश्रमणादि तिसतिस प्रतिमाके अनिलापसे पूर्ववत् । प्रत्याख्यान नियम चर्यादि सर्व तेसेंही जानने. दमक नी तिसके अनि लापसें सोही जानना. ॥ इतिव्रतप्रतिमा ॥२॥ अथ तीसरी सामायिक प्रतिमा, सा, तीन मास तक उनयसंध्यामें सामायिक करनेसें होती है. शेष नंदिनियम व्रतादिविधि सोश् अर्थात् पूर्वोक्तही जान ना. और दंडक सामायिकके अनिलापसे कहना.॥ इतिसामायिकप्रतिमा ॥३॥ अथ चौथी पौषधप्रतिमा, सा, चार मास यावत् अष्टमी चौदशको चार प्रकारके थाहारके त्यागमें रक्तको चार प्रकारके पौषधके करनेसे होती है. प्रव्यादिनेदसे दो आदि मासपर्यंत इस कथनसे यथाशक्ति सूचन कि गश्. यहां नंदिव्रत नियमा
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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