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________________ उ३० जैनधर्मसिंधु. से कमंमयुप्रमुख होवे, ये कैसे है ? रा रागादि कके अंक-चिन्ह है, सोही दिखावे हैं. स्त्री रागका चिन्ह है, । जो पासे स्त्री होवे तो जाणना कि, इसमें राग हैं. । शस्त्र द्वेषका चिन्ह है, जो पासे हाथियार देखीए तो, ऐसा जाणिये कि तिसने किसी वैरीको मारना चूरना है, अथवा किसीका जय हैं, जिस वास्ते शस्त्रधारण किये हैं. । अद सूत्र असर्वज्ञपणाकाचिह्न है. यदि होवे तो, मणके विना गिणतीकी संख्या जाणलेवे. अथवा तिससे अधिक बडा अन्य कोश है, जिसका वो जाप करता - है ? । कमंमलु अशुचिपणेका चिन्ह है, यदि हाथ में कमंमलु पाणीका नाजन देखीए तो, ऐसा जाणि ये की, यह अशुचि है. शौच करणेके वास्ते यह कमंगलु धारण करता है. यतउक्तं ॥ स्त्रीसंगः काममाचष्टे छेषं चायुधसंग्रहः ॥ व्यामोहं चादसूत्रादिरशौचं च कर्ममबुः ॥१॥ इन पूर्वोक्त दोषोंकरके जे दूषित है, तथा निग्र हा जिसके उपर रुष्टमान होवे, तिसको निग्रह (बंधनमरणादिक) करें, और, जिसके उपर तुष्ट मान होवे, तिसको अनुग्रह (राज्यादिकके वर) देवें; तेदेवा वे देव, मुक्तिके हेतु नही होते हैं __ऐसे पूर्वोक्त देव अपने सेवकोंको मोद नहीं दे सकते हैं, सोही वात फिर कहते हैं । नाट्या जे
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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