SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 730
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ए६ जैनधर्मसिंधु जीवाजीवाश्रवबंधसंवरनिर्जराबंधमोक्षप्रकाशकः, स एव जगवान् , शान्तिं करोतु, तुष्टिं करोतु, पुष्टिं करोतु, शर्मि करोतु, वृद्धिं करोतु, सुखं करोतु, सौख्यं करोतु, श्रियं करोतु, लदमीं करोतु अहँ ॥ ऐसें आर्यवेदके पाठी ब्राह्मण, आगे चलें। पी इसी विधिसे महोत्सवकरके, चैत्यपरिपाटी, गुरुवंदन, मंमली पूजन, नगरदेवतादिपूजन, करके, नगरके समीप रहे; पीजे पंथमें चलें । तथा इसी रीतिसे कन्याधिष्ठित नगरमें प्रवेश करना.। तिसही नगरमें विवादकेवास्ते चले हुए वरका नी, यही विधि जाणनाः । तथा नित्यस्नानके अनंतर कौसुन सूत्रकरके वधूवरके शरीरका माप करना. । पीने विवाह दिनके आये हुए, विवाहलग्नसे पहिले, तिस ही नगरका वासी, वा अन्यदेशसें आया वर, तिस ही पूर्वोक्त विधिसें, पाणिग्रहणकेवास्ते चले. तिस की बहिन विशेषकरके लूणश्रादि उत्तारण करे। पीले वर, श्रागंबर और गृहस्थगुरुसहित कन्याके घरके छारमें आवे. तहां खडे हुए वरको, तिसके सासुजन, कपुरदीपकादिकरके आरात्रिक (श्रारति) करे। पीछे अन्य स्त्री, जलते हुए अंगारे, और लवणकरके संयुक्त, त्रम त्रम ऐसे शब्द करते हुए, सरावसंपुटको, वरको निलंबन करके, प्रवेशमार्गके वामे पासे स्थापन करे. । पीछे अन्य स्त्री कौसुं
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy