SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 660
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२६ जैनधर्मसिंधु. त्रोदक, सर्वोषधिजल और तीर्थजल, श्नोंकरके स्नान कराये हुए बालकको वस्त्राचरणादि पहिनावे. ॥ तथा स्त्रीयोंको सूतकदिनोंके पूर्ण हुएजी,आई नद त्रोंमें, और सिंह गजयोनि नदमोंमें सूतकस्नान नही करावणा. । श्रार्ड नक्षत्र दश है. । कृत्तिका १, नरणी २, मूल ३, बार्सा ४, पुष्य ५, पुनर्वसु ६, मघा ७, चित्रा ज, विशाखा ए, श्रवण १०, ये दश आर्य नक्षत्र हैं। इनमें स्त्रीको सूतकस्नान न करावे. यदि स्नान करे तो, फिर प्रसूति न होवे. ॥ धनिष्ठा १, पूर्वानाउपदा २, ये दो सिंहयोनि नक्षत्र जाणने; और जरणी १, रेवती २, ये दो नक्षत्र गजयोनि जाणने. ॥ कदाचित् सूतक पूर्ण हुए दिनमें इन पूर्वोक्त नक्षत्रोंमेंसे को नदत्र थावे, तब एक एक दिनके अंतरे शुचिकर्म करणा. ॥ पूजावस्तु, पंच गव्य, खगोत्रज जन, तीर्थोदक, शुचिकर्मसंस्का रमें चाहिये.॥ इति सप्तमशुचिकर्मसंस्कार विधि अथ नामकरणसंस्कार विधि ॥ मृड, ध्रुव, विप्र और चर, श्न नक्षत्रोंमें पुत्रका जातकर्म करना. अथवा गुरु वा शुक्र, चतुर्थ स्थित होवे, तब नाम करना, सजन पुरुषोंको सम्मत है.॥ शुचिकर्म दिनमें अथवा तिसके दूसरे वा तीसरे
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy