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________________ जैनधर्मसिंधु. इतनी वस्तु चाहिये. ॥ इतिजन्म सं० विधि; ॥ अ थ कदाचित् अश्लेषामें,ज्येष्टामें,मूलमें,गंमांतमें नामें बालकका जन्म होवे तो बालकको,बालकके मातापि ताको, बालकके कुलको, पुःख, दारिज, शोक, मर णादि कष्ट होवे,इसवास्ते बालकका पिता और कुल ज्येष्ट (कुलका बमा) शांतिकविधिमें कहे विधानके करेविना बालकका मुख न देखे. ॥ इति जन्मसंस्कार विधिः अथ चतुर्थ सूर्यचंप्रदर्शन संस्कार वर्णन तीसरे दिन गुरु समीपके घरमें अर्हत् पूजन पूर्वक जिनप्रतिमाके आगे स्वर्णताम्रमयी वा रक्त चंदनमयी सूर्यकी प्रतिमा स्थापन करे.तदपीने स्नान करके अलंकृत बालककी माताको जिसने दोनों हा थोंमें बालकको धारण किया है ऐसी माताको प्रत्यक्ष सूर्यके सन्मुख लेजाके, वेदमंत्रको उच्चारण करता हुआ, गुरु पुत्रको सूर्यका दर्शन करावे. ॥ सूर्यवेदमंत्रो यथा ॥ “॥ ॐ अहं । सूर्योऽसि । दिनकरोऽसि । सहस्र किरणोऽसि । विजावसुरसि । तमोपहोऽसि । प्रियंक रोऽसि । शिवंकरोऽसि । जगच्चतुरसि । सुरवेष्टितो ऽसि । विततविमानोऽसि । तेजोमयोऽसि । अरुणसा रथिरसि । मार्त्तमोऽसि । द्वादशात्माऽसि । वक्रबांध
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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