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________________ प्रथमपरिवेंद. मादर, पुरस्सरं संस्तुता जया देवि ॥ कुरुते शांतिं नमतां, नमो नमः शांतये तस्मै ॥१५॥ शति पूर्वसूरिदर्शित, मंत्रपदविदर्जितः स्तवः शांतेः ॥ सलिलादिनयविनाशी, शांत्यादिक रश्च नक्तिमताम् ॥१६॥ यश्चैनं पठति सदा शृणोति नावयति वा यथायोग्यम् ॥ स हि शां तिपदं यायात, सूरिश्रीमानदेवश्च ॥ १७ ॥ पसर्गाः दयं यांति, बिद्यते विघ्नवल्लयः॥ मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ १७ ॥स र्वमंगलमांगल्याम, सर्वकल्यालकारणम् ॥प्रधा नं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥१५॥ ॥ इति श्री लघुशांतिस्तवः ॥४७॥ ॥४॥ अथ श्री चनक्कसाय॥ ॥चनकसाय पडिमल्लूबुरणु, उजय मयण बाणु मुसुमूरण ॥ सरस पिअंगु वन्नुगयगामि ज, जयन पासु नुवणत्तयसामिन ॥१॥ जसु तणु कांति कडप्पसिणिन, सोहर फणि मणि किरणालिन॥ नं नव जलदर तमिल्लय लंबि ज, सो जिणु पासु पयबन वंदिन ॥२॥ इति चनक्कसाय ॥४॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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