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________________ सप्तमपरिच्छेद. एउ पाणाश्वायस्स वेरमणे ॥ एस कुत्ते इक्कमे ॥ १॥ ति रागाय जा जाता । तिवदोसा तदेव य ॥ मुसा वायरस वेरमणे | एस वुत्ते कमे ॥ २ ॥ उग्गहं सि जाता ॥ श्रवि दिन्ने उग्गहे || अदिन्नादा एस्स वेरमणे ॥ एसवुत्ते कमे ॥ ३ ॥ सद्दा रुवा रसा गंधा ॥ फासाणं पविचारणे ॥ मेहुणस्स वेरम ऐ ॥ एस बुत्ते इक्कमे ॥ ४ ॥ इछा मुछा य गेही अ ॥ कंखा लोटा दारुणे ॥ परिग्गहस्स वेरमणे ॥ एस कुत्ते मे ॥५॥ अश्मत्ते आहारे ॥ सूरे वित्तंमि संकिए || राईजोयणस्स वेरमणे ॥ एस वु ते मे ॥ ६ दंसणनाण चरिते ॥ श्रविरा हित्ता हि समण धम्मे ॥ पढमंवयमरके ॥ विरयामो पाणावाया ॥ ७ ॥ दंसणनाथ चरिते ॥ विरा हित्ताहि समय धम्मे ॥ बीयंवयमरके ॥ विरयामो मुसावाया ॥ ८ ॥ दंसणनाण चरिते ॥ विराहित्ता हि समण धम्मे ॥ तां वयमपुर के ॥ विरयामो दिन्नदाणा ॥ ए ॥ दंसण नाण चरिते ॥ श्रवरादित्ता हि समण धम्मे ॥ चउछं वयमरके ॥ विरयामो मेहुणा ॥ १० ॥ दंसण नाण चरिते ॥ श्रविराहित्ता हि समणधम्मे ॥ पंचमं वयमरके ॥ विरयामो परिग्गहाई ॥ ११ ॥ दंसण नाए चरिते ॥ श्रविरहित्ता हि समणधम्मे बहं व यमरके ॥ राजोयणा आलयवि ॥ १२ ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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