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________________ सप्तमपरिबेद. ५५७ मामि तिहिं दंडेहिं ॥ मणदंडेणं । वयदंडेणं । कायदं डेणं ॥ पमिकमामि तिहिं गुत्तीहिं ॥ मनगुत्तीए ॥ वयगुत्तीए ॥ कायगुत्तीए ॥ पमिकमामि तिहिं सो हिं ॥ माया सबेणं ॥ नियाण सढेणं ॥ मिलादंस ण सद्देणं ॥ पमि० ॥ तिहिं गारवेहिं ॥ढी गार वेणं । रसगारवेणं ॥ साया गारवेणं ॥ पमि० ॥ तिहिं विराहणाहिं ॥ नाण विराहणाए देसण विरा हणाए । चरित्त विराहणाए ॥३॥ पमिणाचनहिं कसा एहिं ॥ कोह कसाएणं ॥ माण कसाएणं ॥ माया कसाएणं ॥ खोज कसाएणं ॥ पमि॥ चनहिं सन्ना हिं ॥ थाहार सन्नाए ॥ जय सन्नाए ॥ मेहुण सन्ना ए ॥ परिग्गह सन्नाए ॥ पमि० ॥ चनहिं विकहा हिं ॥ इठिकहाए ॥ नत्तकहाए ॥ देसकहाए ॥ राय कहाए ॥ पमि॥चउर्दि जाणेहिं॥ श्रहेणं फाणेणं॥ रुदेणं जाणेणं ॥ धम्मेणं माणेणं ॥ सुक्केणं जाणेणं॥४॥ ॥ १० ॥ पंचहिं किरिश्राहिं ॥ काश्याए ॥ अहिग रणियाए ॥पाउसिथाए॥पारितावणियाए ॥ पाणा श्वाय किरिथाए ॥ प० ॥ पंचहिं कामगुणेहिं॥ ॥ सद्देणं ॥ रूवेणं रसेणं ॥गंधेणं ॥ फासेणं ॥ ॥ ५० ॥ पंचहिं महत्वएहिं पाणावाया वेरमणं ॥ मुसावाया बेरमणं ॥अदिन्नादाणा वेरमणं ॥मेह णा वेरमणं ॥ परिग्गहाळ वेरमणं ॥ प० ॥ पंचहिं समिहिं ॥ इरिश्रासमिश्ए ॥ नासासमिश्ए ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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