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शष्ठमपरिवेद. ५१७ पूज्यो प्रेमशुं पापना बंध वारे ॥ १५ ॥ वधे वंदतां संपदा जे वधारे, धघु ध्यानमां सेवकां बाहे धारे ॥ अर्यो उबटे आपदाथी उगारे, स्तव्यो त्रिविधे जेह संसार तारे ॥ २० ॥ नम्यो नेहशुं जेह नवेनिकि आपे, कीजे चाकरी तो चारे गति कापे ॥ जोतां जेहनी श्रादि कोई न जाणे, कवि तेहना गुण केता वखाणे ॥२१॥ नमो नाथ अनाथ सनाथ कारी, नमस्ते अरूपी बहु रूपधारी ॥ नमो बुद्धि शुद्धा तमा सिकि नर्त्ता, नमो पारगामी नमो सौख्य कर्ता ॥२॥ नमो मुक्ति दाता नमो तुं विधाता, नमो विश्वनेता नमो तुं विख्याता ॥ नमो सर्व वेदी अवे दी नमस्ते. नमो शंकरो सर्वव्यापी नमस्ते ॥ २३॥ सेढी वेत्रवत्योपकंठे दिदारु, खेहुँ हरीश्राद्धं वसे गाम वारु ॥ राजे तत्र त्रेवीशमो तीर्थराय, जेहना नामथी कोटि कल्याण थाय ॥ २४ ॥ धरणे पद्मा वतीने पसाय, सदा संघना विघ्न पूरे पलाय ॥ उद यरत्न नांखे गाता पार्श्वस्वामी, पूरी आजमेंतो नवे निछिपामी ॥२५॥ ॥ अथ सरस्वती अष्टक प्रारंजः॥
॥ हरिगीत बंद ॥ ॥ बुद्ध विमलकर नाव बुधवर, निरूप रमनी, निर खियें ॥ वर देय न बाला, पद प्रवाला, मंत्रमा ला हर खियें ॥ स्थिर थानंना, अति अचंना, रूप