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________________ जैनधर्मसिंधु. तारा गण विकसें, तिम गोयम गुण केलिवनी ॥३॥ पूनिम निसि जिम ससिहर सोहे, सुरतरु महिमा जिम जग मोहे, पूरव दिसि जिम सहसकरो॥पंचा नन जिम गिरिवर राजे, नरवर घर जिम मयंगल गाजे, तिम जिनशासन मुनि पवरो ॥४०॥ जिम सु रतरुवर सोहे शाखा, जिम उत्तममुख मधुरी जाखा, जिम वनकेतकी महमहे ए ॥ जिम नूमिपति नूय बल चमके, जिम जिनमंदिर घंटा रणके, तिम गो यम लब्धे गहगहे ए॥४१॥ चिंतामणि कर चढिउ आज, सुरतरु सारे वंद्रिय काज, कामकुंन सवि वश हुई ए ॥ कामगवी पूरे मनकामिय, अष्ट महासिक श्रावे धामिय, सामिय गोयम अणुसरो ए ॥ ४२ ॥ पणवरकर पहेलो पजणीजें, मायाबीज श्रवण निसु गजें, श्रीमती शोना संजवे ए ॥ देवहधुरि अरि हंत नमीजें, विनयपहु उवद्याय शुणीजें, इण मंत्र गोयम नमो ए॥४३॥ पुर पुर वसतां कांकरीजें, देश देशांतर कांश जमी जें, कवण काज श्रायास करो॥ प्रह ठी गोयम समरीजें काजसमग्रह ततखण. सिके, नवनिधि विलसे तास घरे ॥ ४४ ॥ चउदह सय बारोत्तर वरसें, गोयम गणहर केवल दिवसे, किलं कवित उपगारकरो ॥ श्रादिहिंमंगल एचपन णीजे, परव महोबव पहिलो लीजे, शछि वृद्धिक खाण करो ॥ ४५ ॥ धन माता जिणे जयरे धरिया,
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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