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________________ ४४० जैनधर्मसिंधु. ते पण दोहिडं रे हां, एतो दोहिलो ज्ञानसंयोग ॥ ज० ॥ दोहिली जिननी सेवना रे हां, एतो दो हिलो मननो योग ॥ ज० ॥३॥ ए सविपुलन पामवां रे हां, जिम रयणतणे दृष्टांत ॥ न ॥ ते तुम पुण्यप्रनावथी रे हां, एतो पाम्यो मनुनव संत ॥न ॥४॥ पामी चउदश तप तणो रे हां, एतो खप करो मनने प्रमोद ॥ न ॥ चौद नियम संना रजो रे हां, एतो संदेपजो तिम चौद ॥न ॥५॥ चौद पूरवना नावथी रे हां, एतो चौदमे चढे गुण गण ॥ ज० ॥ अंतगम केवली होवे रे हां, एतो श्रदर पंच प्रमाण ॥ न० ॥६॥ चौद जुवन ए लोकनां रे हां, एतो देखी जाणे नाव ॥ ज०॥चौद रज्ज्वात्मक नेदीने रे हां, एतो शिव सुख ते नित्य पावल॥७॥ चौद लाख मनु योनिनारे हां,ए तो बूटीयें दुःखथी जीव ॥ ज० ॥ श्म जाणी चऊदश आदरो रे हां, एतो दिल करि नाव अतीव ॥न॥ ॥ ॥ चउदशना गुण सांजली रे हां, धरियें सुवि हित बुध ॥ नम्॥लब्धिविजय रंगे करी रे हां, एतो लहिये कि समृकि रे॥ ज० ॥ ए ॥ इति ॥ ॥अक्क पूर्णिमानी ससाय प्रारंजः ॥ । ॥सुमला संदेशो रे कहे माहरा पूज्यने रे ॥ ए देशी ॥ पूनम कहे नव्य जीवनें रे, सांजलो सद्गुरु वाणी रे ॥ अथिर तन धन आउखु रे, जलबुद
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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