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________________ पंचमपरिछेद. ४३ ॥ वि०॥ न ॥६॥ जिरे नवपद ध्यान सदा ध री, ए तो पाली नव विध शील हो ॥ वि० नव नोकषायने परहरी, एतो लहीयें सुखनी लील हो ॥ वि० ॥ न० ॥७॥ जिरे नवेतत्वने अोलखी, ए तो पामी मनुष्य अवतार हो ॥ वि०॥ शत्रुमित्र स रिखा गणो, एतो सकल जंतु निर्धार हो ॥विजन॥ ॥ ॥ जिरे उपकार ते कीजीयें, ए तो टालीये प रनी पीक हो ॥ वि० ॥ नवमीयें नवपुण्य अनुसरी, ए तो नांगी जवनी नीम हो ॥ वि०॥ न॥॥ जिरे इण विध नवमी प्रमोदशुं, एतो आदरे प्राणी जेह हो ॥ वि० ॥ लब्धिविजय रंगें करी, एतो शि वसुख लेहशे तेह हो ॥ वि० ॥ ज० ॥ १० ॥ इति॥ ॥अथ दशमीनी सद्याय प्रारंजः ॥ ॥ राम नणे हरि उठीयें ॥ ए देशी ॥ दशमीयें पुषमन वारियें काम क्रोध मद जोर रे ॥ दश विध यति धर्म आचरी, कापीयें दुःख तणी दोर रे, लाल सुरंगारे अत्तमा वहिये धर्मनी होररे प्रग टे पुण्यनो तोर रे, लहियें मुकितनुं गेर रे, वाधे जस चिहुं उर रे ॥ ला ॥१॥ दशविध विनय अभ्यासथी, तोमीयें मोहजंजाल रे॥दशविध मिथ्या त्व परहरी, मी आल पंपाल रे ॥ ला ॥ मेली ये सुकृतमाल रे, प्रगटे लाग्य विशाल रे, होवे मंग लमाल रे, लहियें सुख ततकाल रे ॥ ला ॥२॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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