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________________ प्रथमपरिछेद. ॥२४॥ अथ सिहाणं बुाणं ॥ ॥सिहाणं, बुहाणं पारगयाणं परंपरगया णं ॥ लोअग्ग मुवगयाणं, नमो सया सबसि हाणं ॥१॥ जो देवाणवि देवो, जं देवा पंजली नमंसंति ॥ तं देव देव मदिरं, सिरसा वंदे म हावीरं ॥३॥इकोवि नमुक्कारो, जिणवरवस हस्स वक्ष्माणस्स ॥ संसारसागरा तारे नरंव नारिंवा ॥३॥ जडित सेल सिदरे, दिका नाणं निसीदिया जस्स ॥ तं धम्मचक्क वहि,अ रिहनेमि नमसामि॥४॥ चत्तारि अह दसदो य, वंदिया जिवरा चनव्वीसं ॥ परमह निक अहा, सिधा सिम् िमम दिसंतु॥५॥इतिश्४ ॥२॥ अथ वेयावच्चं गराणं ॥ ॥वेयावच्चगराणं संतिगराणं ॥ सम्मदिति समादि गराणं ॥ इति ॥ २५॥ करेमि कान स्सग्गं ॥ अन्नब॥ ॥२६॥अथ नगवानादि वंदन ॥ ॥नगवान् दं॥ आचार्य हं॥ उपाध्याय हं॥ सर्वसाधु दं॥ इति ॥२६॥.. ..
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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