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________________ पंचमपरिच्छेद . चार ॥ ला० ॥ दोय सद्यायें ते वली, टालो टालो अतिचार ॥ बा० ॥ कर ॥ ५ ॥ श्री सामायिक प्रतापथी, लहियें अमर विमान ॥ लालरे ॥ धर्म सिंह मुनि एम जणे, ए बे मुकित निदान ॥ ला लरे ॥ कर० ॥ ६ ॥ ॥ अथ बींक विचार सद्याय ॥ || देशी चोपाइनी ॥ बीक शुकननो कहुं विचार, सुगुरु समीप सूयो में सार ॥ आगलमां जो बींकज होय, अशुभ तणी जाणे जे, कोय ॥१॥ पहेला शुकन हुवां शुज घणां ॥ ढींकज हुआ निष्फल तेतणां पढीं कज हुआ पढी जे जाए, शुकन हुआ ते करो प्रमा ॥ २ ॥ माबी बींक होय अर्ध फली कहे, जमणी बीक बुरी सब कहे ॥ पूठे बींक सुखदायक सही, घणी ठीक ते निःफल कही ॥ ३ ॥ हांसे जय उपा धीयें करी, हठ घणो मनमांहे धरी ॥ एक बींक ते निःफल जाण, कुतर बींक तो निःखर आए ॥ ४ ॥ मंजार बींक ते मरणज करे, इसी बींक कष्टकारी सरे, ॥ वस्तु वेचतां बींकज होय, श्राएयुं करीयाएं मोघुं होय ॥ ५ ॥ वस्तु लेतां बींकज होय, बमणो लाज सघलानो जोय ॥ गइ वस्तु जो जोवा जाय, बींक होय तो लाज न थाय ॥ ६ ॥ नवां वस्त्र वली पेहेरतां, बींक होये आगल बतां ॥ जोजन होम पूजानुं काम, मंगलीक जेधर्म सुठाम ॥ ७ ॥ ५२ MOR
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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