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________________ पंचमपरिछेद. ४५ कांटा जिम होय ॥ ब० ॥२॥ बला बला सहुको कहे, बीजी जला बलवंत ॥ ए जेवी एके नहीं, जे बलें पामी बलंत ॥ ब० ॥३॥ श्राखाढो गाढो ब ट्यो केश बख्या नर कोम ॥ गुणवंतनु पण नहीं ग जु, जे क्षणमां लगाडे खोड ॥ ब० ॥ ४ ॥ जलाले आकासमां, एक आंखे उलाले अनेक ॥ महीयें पग मंडे नहीं वली, नासे विनय विवेक ॥ब० ॥ ॥५॥ जशोधर जिस्या खानमी, वली मुंज जिस्या महाराज ॥ पुण्यवंत परदेशी सारिखा, ते कांता हण्या निजकाज ॥ ब० ॥६॥ जोरावर जंबू जिस्या, वंक चूल सरिखा वीर ॥ समर्थ शूविना सारिखा, जेह नां नारियें न उतास्यां नीर ॥ ब० ॥७॥ शोल स ती श्रादें थर महासतीयो जग हितकार ॥ अने क नर तेणें उमस्या, रहनेमि आदें निरधार ॥॥ ॥ ॥ सुदर्शन बलतां नवि बस्यो, थयो केवल क मलाकंत ॥ परमोदय पामे सही, जे पास एहने न पंत ॥ व०॥ ए ॥ इति स्त्री वर्जन सजाय ॥ ॥अथ परस्त्री वर्जन सद्याय ॥ ॥धणरा ढोला ए देशी ॥ ॥ शीख सुणो पीउ माहरी रे, तुजने कहुं कर जोक ॥ धणरा ढोला ॥प्रीत म कर परनारी शुं रे, आवे पग पग खोम ॥ध कडं मानोरे सुजाण कह्यु मानो ॥ वरज्यां वों, मारा लाल, वरज्यां
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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