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________________ ३६ जैनधर्मसिंधु ढं ॥२॥ हरि पूजे श्री नेमने ॥ हुं० ॥ मुनिवर सहस्स अढार रे ॥ ९० ॥ उत्कृष्टो कोण एहमें ॥ ॥ हुं० ॥ मुजने कहो कृपाल रे ॥ हुं० ॥ ढं॥३॥ ढंढण अधिको दाखीयो ॥ हुं० ॥ श्रीमुख नेम जि णंद रे ॥ हुं ॥ कृष्ण उमाह्यो वांदवा ॥ हुं० ॥ध न्य जादवकुल चंद रे ॥ हुं० ॥ ढंग ॥४॥ गलीश्रा रे मुनिवर मल्या हुं० ॥ वादे कृष्ण नरेश रे ॥९॥ किणही मीथ्यात्वी देखिने ॥ हुं० ॥ श्राव्यो जाव विशेष रे॥ हुं ॥ ढंग ॥ ५ ॥ श्रावो श्रम घर साधु जी ॥ हुं त्यो मोदक ने शुद्ध रे ॥ ढुंग ॥ रिषीजी लश् श्रावीया ॥ ९० ॥ प्रचुजी पास विशुद्ध रे ॥ ॥ हुं० ॥ ढं० ॥ ६॥ मुज लब्धे मोदक मिख्या ॥ ॥ हुं० ॥ मुजने कहो कृपाल रे ॥ हुं० ॥ लब्धि न हिं वत्स ताहरी ॥ हुं० ॥ श्रीपति लब्धि निहाल रे ॥ हुं० ॥ ढंग ॥ ७॥ तो मुजने लेवो नहीं ॥ ९ ॥ चाल्यो परठण काज रे ॥ हुं० ॥ इंट निंजाडे जा ने ॥ हुं० ॥ चूरे कर्म समाज रे ॥ हुं ॥ ढंग ॥ ॥ श्रावी सूधी नावना ॥ हुँ० ॥ पाम्यो केवल नाण रे ॥ हुं० ॥ ढंढण ऋषि मुगते गया हुं० ॥ कहे जिन हर्ष सुजाण रे ॥ ९ ॥ ढंग ॥ ए ॥ इति ढंढण षिनी सद्याय ॥ ॥ अथ श्री अश्मंताजीनी सद्याय ॥ ॥ श्री अश्मंता मुनिवरजूके, करणीकी बलि हा
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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