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________________ पंचमपरिछेद. ३७७ रे॥१॥ जो ॥ जरा राक्षसी जोर करे बे, फेलावे फजेती रे ॥ श्रावी अवधे उशंके नहीं, लखपतिने खेती रे ॥ जो ॥२॥ मा बेग मोज करे बे, खांतें जोवे खेती रे ॥ जमरो नमरो ताणी लेशे, गोफण गोला सेंती रे ॥॥ जो ॥३॥ जिनराजाने शरणे जाउँ, जोरालो को न जेथी रे ॥ पुनीयामा दूजो दीसे नहीं, श्राखर तरशो तेथी रे ॥ जो ॥ ॥४॥ दंत पड्याने मोसो थयो, काज सयुं नहीं केथी रे ॥ उदयरत्न कहे या समजो, कहीयें वातो केती रे ॥ जो ॥५॥ ॥अथ निंदावारक सद्याय ॥ ॥ निंदा म करजो कोइ पारकी रे, निंदानां बोख्यां महा पाप रे ॥ वयर विरोध वाधे घणो रे, निंदा करतां न गणे माय बाप रे ॥ निंदा ॥१॥ दूर बलंती कां देखो तुम्हें रे, पगमा बलती जुवो सहु कोय रे ॥ परना मेलमां धोयां लूगां रे, कहो केम ऊजलां होय रे ॥ निं ॥२॥श्राप संजालो सहुको श्रापणो रे, निंदानी मूको पमी टेव रे ॥ थो डे घणे अवगुणे सह नया रे, केहनां नलियां चुए केहेनां नेव रे॥नि॥३॥ निंदा करे ते थाये नारकी रे, तप जप की, सहु जाय रे ॥ निंदा करो तो क रजो श्रापणी रे, जेम बुटकबारो थाय रे॥ निं॥ ॥४॥ गुण ग्रहजो सहुको तणो रे, जेहमां देखो ४८
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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