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________________ ३६८ जैनधर्मसिंधु. थुणतां पामो अक्षय ज्ञान ॥ बालमित्रकी अरजी suatr. प्रभुको शरण प्रधांनरे ॥ प्रभु नेमकुमरजी ७ पद. किसविध किये कर्म चकचूर ॥ उतम क्षमापे चंनो मने यावे ॥ क ॥ एक तो प्रभु तुम परम दयालु रोसन तिलतुष मात्र हजूर ॥ डुजे जीव दयाके सागर ॥ तीजे संतोषी नरपुर | उ ॥ १ ॥ चोथे प्रभुतुमही तउपदेश ॥ तारन तरन जगत मसहुर ॥ कोमल वचन सरन सत वक्ता ॥ निर्लोभी संजम तपसूर ॥२॥ केसे मोह मलतुमजीत्यो ॥ अंतराय के से कियो निरमूल || केसेज्ञाना वरण निवार्यो | केसे कियेचा रोघातिया दूर ॥ ३ ॥ त्यागी वैरागी हो तुमसाहेब ॥ यकिं चनव्रत धारकर ॥ सुरनर मुनी सेवेचर्नतुमारे तोजीनहि प्रभुजी केगरुर ॥ ४ ॥ करत यासारदास नसुख ॥ दीजेाब मोहेदान जरुर ॥ जन्मजन्म पद पंकज सेतुं ॥ योरन कबु चित चाहेहजूर ॥ ५ ॥ ॥ ॥ इति चतुर्थ परिछेदः समाप्तः ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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