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________________ ३६३ चतुर्थपरिछेद. जुको, देख दरस हरखाई ॥ हृदय मेरो अति उल साई॥१॥ सा॥ आज हमारे सुरतरु प्रगटे,आज श्रानंद बधाई ॥ तिन लोकको नायक निरख्यो, प्रगटी पूर्व पुण्याई, सफल मेरो जन्म कहाई॥॥ सा॥प्रजुके सरस दरस बिनुपाए,नव नव नटक्योंमें नाई॥ अबतो प्रजुके चरण चित्तलाग्यो, बाल कहे गुणगाई प्रनु संग लगन लगाई ॥३॥ सा ॥ इति ॥ . होरी. राग उपर प्रमाणे ॥ सामपे कहियो वीनती मोरी॥ एटेक ॥ राजुल चंडानकों बोले, आइ बसंत रीतु होरी, बागुंमैं फाग केसीमे खेलु ॥ सब सखियनकी टोरी ॥ प्रिया गए हमको बोरी ॥१॥ सा॥ सज सिनगार संग लइ सिखरे, अबीर गुलालकी जोरी, अपने पिया संग खेलखेलत हे, केशरको रस घोरी, बाजे मफ ताल टकोरी॥२॥॥ सा ॥ एते कारन वालम घर श्रावो, खेलुमें रंगजर होरी॥ ए वीनती सुन प्रजुने राजुलकी ॥ दीने सब मुखतोरी ॥ रत्नकहे नर वरजोरी ॥३॥ सा ॥ इति ॥ ॥पावा पुर जिन गीतं ॥ अखियां मेरी प्रजुजीसें आज लगी॥ टेर ॥ पावा पुर श्रीवीरजिनेश्वर ॥ देखत पुरगति पुरटली॥ श्र॥१॥ मस्तक मुकुटसोहे मनमोहन ॥ बिचविच हीरा मोतिलालजमि ॥२॥ अ॥ रत्नजमि.
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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