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नयमान
चतुर्थपरिछेद. मर्कट मुगीजिम ॥ त्रमबशअतिऽखपावेरे ॥ चिदा नंद चेतनगुरुगमबिना, मृग त्रमाधरीधावेरे॥५॥इति
रागिणी नैरवी-ताल मध्यमान वसोजी मेरे नेननमें महाराज, सामलि सूरत मोह नि मूरत ॥ तारण तरण जिहाज ॥वावानी सुधारस दरस ऊपन्यो॥करतां श्रगम अपार ॥वाचेन विजय करजोडी वीनवे, चरण कमल सिरताज ॥वाति॥
रागिणी गारा जैरवी दीनके नाथ दयाल सबन की । तें काहेकुं कृपा विसारीरे दीन ॥ में हं दीन अनाथ जगत मै, तूं साहिव उपकारीरे ।दीन। पण अपनेकी रीत निब हिये। दो संपद सुखकारीरे दी० ॥ दास चुनी सेव ककी श्ररजी। सुनिये प्रनु जसधारीरे ॥ दी॥इति
पुनः प्रजु मोसे कवन वहाने बोलो, रैन दिहा मार्नु ध्यान तुमारा, अंतर दी पट खोलो ॥ प्र० ॥ हाल असांगा तुऊनुं मालुम, जो खामि टुक जोलो ॥॥ श्रास पुरावो दासको स्वामी, ऊटपट सङ्ग मिला लो॥ दास चुनी पायो रत्न अमोलक, वेर २ क्युं तोलो ॥
रागिणी रवी-ताल तेताल जविकनरसेवोशांतिजिनन्द ॥ कञ्चन वरन मनो हरमुरती, दीपत तेजदिनन्द । रन ॥ पञ्चम चक्रध र सोलमजिनवर, विश्वसेननृपकुलचंद ॥ २ म० ॥