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________________ चतुर्थपरिच्छेद. ३१ ॥१॥६॥में पहिराती जुज जुजबंध, पहरा देतुंवाली कपमा॥ई॥२॥ में तो मुगट धरूं सीर उपर तुं पहरा दे फूलुंके गजरा ॥ ई० ॥३॥ नयनानन्द सुर ईन्ज नगति लख, नविजन सम्यक दृष्टि खरा॥३०॥४॥ ताल दादरा। . नयना पीहर वा गये नयना वदल॥नयना वदल गये वनकुं निकल गये, बृतलीना सुधर॥नय१॥व्याह नकुं, आये मेरे उला कहांए ॥ दे दरस गये तोरणसे फिर ॥नय० ॥१॥जोमारथ परमारथ कारण, कंकणको तोड लीया संजमको धरन॥२॥ पशुपुकारे प्रजुजी नीहारे । दुखिया बिचार बोडे बन्धन कतर ॥नय॥३॥ खेलोप्यारी बीमा हमारि।मुळे वेगी बता दो गिरनार कीमगर ॥ने ॥४॥ करुंगी नयन सुखकारी तपस्या में तो लौंगी प्रज्जुके पद पंकज पकर ॥ न॥ पुनः सखीरी म्हारो, नेम गयो गिरनार । तारि है राजुलनार सखिरी ॥ तोरनसे रथ पीडो फेरयो, पशुवारी सुनि पुकार सखिरी ॥१॥ सहसा वलकी कुंज गबिनमें, पंच महाव्रतधार सखिरी॥२॥ राजुल उनी अर्ज करत है, आवागमन निवार स खिरी॥३॥ चंद कपुरा कहे कर जोडी, चरण सरण आधार सखिरी० ॥ इति ॥ .
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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