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________________ ३१६ जैनधर्मसिंधु सुव्रत जिन राईरी ॥ श्रावो० २ ॥ तीन लोकके हित कर प्रगट्यो, नाना कृषि हरषाईरी ॥ श्रावो० ३॥ इति ॥ रागिणी भैरवी - ताल धिमे तेताला वाजतो बधाई राजा नानिके दरबाररे ॥ श्र० ॥ मरु देवाजीने बेटो जायो, नाम कृषन कुमाररे ॥ श्र० १ अयोध्यामे व होवे, मुख बोले जयजयकाररे ॥ घनन २ घण्टा बाजै, देव करे यैथै कररे ॥ श्र० २ ॥ इन्द्राणी सब मङ्गल गावै, लावै मोती मालरे । चन्दन चरची पाये लागे, प्रभु जीवो चिरकालरे ॥ आ० ॥ ३ ॥ नाजि राजा दानदेवे, वरसे खण्डित धाररे ॥ गाम नगर पुर पाटण देवे, देवे मणि जंढाररे श्र० ४ ॥ हाथी देवे साथी देवे, रथ देवे तुखारे । हीर चीर पिताम्बर देवे, देवे सब सिनगाररे ॥ श्र० ५ ॥ तिन लोक को दिनकर प्रगट्यो, घर घर मङ्गलचाररे । केवल कमला रूप निरञ्जन, आवागमन निवाररे ॥ श्र० ६ ॥ इति ॥ रागिणी भैरवी - ताल धिमे तेताला ॥ मङ्गलरे गावत सकल सुरनार ॥ ढेर || मोतीयन थाल जरी जाय वधावत, गावत गीत रसाल ॥ मं० १ केशर चन्दन कावन जरीयारे, कर लीय कंचन थाल ॥ मं० २ ॥ चंद कुशलकी यही घरज है रे, जवोदधि पार उतार ॥ मं० ३ ॥ इति ।
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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