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॥ जैनधर्मसिंधु. ॥ ॥श्रीश्रावकस्य पंचप्रतिक्रमणादि सूत्राणि ॥ - ॥१॥ प्रथमनवकार पंचमंगलरूप ॥ __॥ नमो अरिहंताणं॥२॥नमो सिधाणं ॥२॥ नमो आयरियाणं ॥३॥ नमो नवनायाणं ॥४॥ नमो लोए सबसाहूणं ॥५॥ एसो पंच नमु कारो ॥ ६॥ सवपावप्पणासणो ॥ ॥ मंग खाणं च सबसि ॥ ७ ॥ पढमं दव मंगलं ॥ए॥इति ॥१॥
॥॥ अथ पंचिंदिअ ॥ ॥पंचिंदिअ संवरणो॥तह नवविह बंनचेर गुत्ति धरो॥ चनविद कसाय मुक्को ॥ श्अ अ हारस गुणेहिं संजुत्तो॥१॥पंच महन्वय जुत्तो॥ पंचविदायार पालणसमबो॥पंच समि ति गुत्तो॥ बत्तीस गुणो गुरु मज ॥॥ इति ॥२॥
॥३॥ अथ खमासमण ॥ ॥श्बामि खमासमणो वंदिनाजावणिजाए. निसीहिआए । मबएण वंदामि ॥ इति ॥३॥