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________________ चतुर्थपरिवेद. ए ॥ अथ श्री एकादशी स्तवन लिख्यते ॥ ॥ जगपति नायक नेमि जिणंद, द्वारिका नगरी समोसया ॥ जगपति वंदवा कृष्ण नरिंद, जादव कोमशुं परिवस्या ॥१॥ जगपति छीगुण फूल अमू ल, जक्तिगुणे माला रची ॥ जगपति पूजी पूजे कृ. ष्ण, दायिक समकित शिवरुचि ॥२॥ जगपति चारित्र धर्म अशक्त, रक्त श्रारंन परिग्रहे॥ जगप ति मुज श्रातम उझार, कारण तुम विण कोण कहे ॥३॥ जगपति तुम सरिखो मुफ नाथ, माथे गाजे गुण निलो ॥ जगपति कोय उपाय बताव, जेमकरे शिववधू कंतलो ॥॥ नरपति उज्ज्वलमागशिर मास आराधो एकादशी ॥ नरपति ऐकशोनेपचाश,कल्या एक तिथि जबसी ॥५॥ नरपति दश क्षेत्रे त्रण काल, चोवीशी त्रीशे मली ॥ नरपति नेवू जिननां कल्याण, विवरी कहुं आगल वली ॥६॥ नरपति अर दीक्षा नमि नाण, मलिजन्म व्रत केवली॥ नरपति वर्तमान चोवीशी, मांहे कल्याणक श्रावली ॥७॥ नरपति मौन पणे उपवास, दोढशो जप मा ला गणो ॥ नरपति मन वच काय पवित्र, चरित्र सू यो सुव्रत तणो ॥ ७॥ नरपति दाहिण धातकीखंम, पश्चिम दिशि श्नुकारथी ॥ नरपति विजय पाटण अनिधान, साचो नृप प्रजापालथी ॥ ए ॥ नरपति नारी चंझावती तास, चंप्रमुखी गजगामिनी ॥ नर
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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