SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४. जैनधर्मसिंधु जाण, खेड शमता करी जिहाजी ॥७॥ उपशम तप नीर, समकित डोम प्रगट होवे जी ॥ संतोष केरी हों वाम, पञ्चरकाण व्रत चोकी सोहे जी ॥७॥ नासे कर्म रिपु चोर, समकित वृक्ष फल्यो तिहांजी ॥ मांजर अनुजव रूप, उतरे चारित्र फल जिहां जी॥ ए ॥ शांति सुधारस वारी, पान करी सुख लीजीयें जी ॥ तंबोल सम त्यो स्वाद, जीवने संतो ष रस किजीयें जी ॥ १० ॥ बीज करो बावीश उत्कृष्टी बावीश मासनी जी ॥ चोविहार उपवास पालियें शील वसुधासनी जी ॥ ११॥ आवश्यक दो य वार, पमिलेहण दोय लीजीये जी ॥ देववंदन त्रण काल, मन वच कायायें कीजीयें जी ॥ १२ ॥ ऊजमणु शुन चित्त, करी धरीयें संयोगथी जी॥ जिन वाणी रस एम, पीजीयें श्रुत उपयोगथी जी ॥ १३ ॥ एणि विध करिये हो.बीज, रागने देष दरें करी जी ॥ केवल पद लहि तास, वरे मुक्ति उलट धरी जी ॥१४॥ जिन पूजा गुरु त्नक्ति, विनय करी सेवो सदा जी ॥ पद्मविजयनो शिष्य,नक्ति पामे सुख संपदा जी ॥१५॥ इति श्री बीज तिथि- स्तवन ॥ ॥अथ श्री पंचमीनु लघुस्तवन लिख्यते ॥ ॥ पंचमीतप तमें करो रे प्राणी, जेम पामो नि मल ज्ञान रे ॥ पहेलु झानने पड़ी क्रिया, नहिं को ज्ञानसमान रे ॥ पंचमी ॥१॥ नंदीसूत्रमा झा
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy