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________________ ছুট जैनधर्मसिंधु. बके कृत्यमें देवाव्य वृद्धि करना. यथाशक्ती यथायोग्य एकवार तो नंडार ढोकना चमावा बोलना. सातमे कृत्यमे स्नात्रादि पूजा पढाना. पुण्यवान प्राणी नित्य स्नात्र पढातेहे यदि न बनेतोजी पर्वणी प्रमुखमे पढानी और एकवर्षमे जघन्यसे एकवारता अवश्यमेव स्नात्रपूजा पढानीइससेंनी अधिक खाजहे. श्रापमें कृत्यमे हरवर्ष एकवारतो अवश्य विशेष विधिसे श्रुत ज्ञान पूजा करना. यद्यपि ज्ञान पूजा हरहमेशका कर्तव्य हे तथापि ज्ञान पंचमी प्रमुख सब पंचमीके दिन यथाशक्ती वासदेप धूप दीप नै वेद्य रोकनाणा वस्त्रादिकसे ज्ञानपूजा अवश्य करनी. ॥ नवमें कृत्यमे हरवर्ष एक उद्यापन करना इसमें यह विचारदे की हरेक प्राणीकों दरवर्ष एकेक तपतो नया जघन्यसें करनाहि चहिये.जो तप करना उस्का उद्यापन अवश्य करना. यद्यपि सब तपके उद्यापन नहि बन शके तो एक तपका तो जरूर करना. ॥ दशमे कृत्यमे तीर्थ प्रनावना करना. इस्मे रथ नीकालना. गुर्वादीकोका नगर प्रवेश मोबव करना ग्यारमें कृत्यमे हरवर्ष पापकी शुशी के लिए गुरुके पास वार्षिक पापकी बालोयणा लेणी. वर्ष दिवसमे अपने जाणतां अणजाता जो कुब पाप हुवे होय सो गुरुकों कहना और उन पापकी शुद्धीकेवास्ते जो
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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