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________________ तृतीयपरिछेद. २५१ दिकसें पूजा करे. केशर चंदन चढाते नीचे लिखित काव्य उच्चार करके चढावे. सच्चंदनेन घनसार विमिश्रितेन, कस्तूरिका व युतेन मनोहरेण । रागादि दोष रहितं महितं सुरें, श्रीमजिनं त्रिजगतः पति मर्चयामि ॥ पुष्प चढाने समय नीचे लिखित काव्य बोले. जाति जपा बकुल चंपक पाटलाथै, मंदार कुंद शत पत्र वरारविंदैः। संसार नाश करणं करुणा प्रधानं, पुष्पैः परैरपि जिने महं यजामि ॥ धूप करने समय नीचे लिखित काव्य बोले. कृष्मागुरु प्रचुरिता सितया समेतं, कर्पूर पूरमहितं विहितं सुयत्नात् । धूपं जिनेंद्र पुरतो गुरुतोष पोषं, जत्योदिपामि निज पुष्कृत नाशनाय ॥ अक्षत चढानेके समय नीचे लिखित श्लोक बोले. शानंच दर्शन मथो चरणं विचिंत्य, पुंज त्रयंच पुरतः प्रविधाय जत्या । चोदाक्षतैः कणगणैः रपरै रपीह, श्रीमंतमादि पुरुषं जिन मर्चयामि ॥ फल चढाने समय नीचे लिखित काव्य बोले. सन्नालिकेर पनसामल बीजपूर,
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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