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________________ হহহ जैनधर्मसिंधु उद्यापनमें पनर लामु और सोना अथवा चांदीकी सूर्य मूर्ति रखके पूजा पढावे ॥ ॥ तीर्थंकर वर्षमान तप ॥ यह तप आयंबिल अथवा नीवीसे किया जाताहे.प्रथम तीर्थंकरका एक श्रांयंबिल, दुसरे के दो, तीसरेके तीन चोथेके चार चोवीसमे के चोवीस करने. फिर चोवीसमेका एक, तेवीसमे के दो, बाईसमें के तीन यों पहिले जगवानके चोवीस आयंबिल करे. जो जो नगवानकी उली होय उस्के नामकी नवकारवा ली गुणे और पूजा करे. उद्यापनमे नैवेद्य चढावे । संघ पूजा करे देवगुरु नक्ति करे. . ॥जैन जनक तप ॥ निरंतर बत्तीस आयंबिल करनेसें यह तप पूरा होता है। उद्यायनमे बडे ग उमाठसे जिन पूजा करनी॥ निगोदायुदय तप ॥ एक उपवास एकासणा दो उपवास एकासना. तीनउपवास एकासना. दो उपवास एकासना एक उवववास एकासना. सिक पद गुणना । उद्यानमें. चोंदा मोदक वाटने और चौदा मोदक मंदरजीमे चढाने और पूजा करानी॥ ॥ कमल उलीतप ॥ एकांतर आठ उपवासकी एक उली करनी एसी नव उली एकहि वर्षमे कर नी चहीये. सिझपद गुणणा ओर उद्यापनमे सोना चांदीके नव नव कमल ढोकना गुरुनक्ति करनी.
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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