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________________ द्वितीयपरिबेद. १ए इत्यादि विधिसंयुक्त वीसों जैलीमें सब पदके उबव महोचव प्रनावना ऊजमणा पूर्वक करे । जि न साशनके उन्नति के कारण करे। इतनी शक्ति न हो (तो) एक उली (तो) विशेष उबवादि सहित करणी चाहिये ॥ इहां विधि प्रपाक ग्रंथसें बीस स्थानक सेवन विधि संक्षेप मात्र लिखीहै (जो) गुरुको संयोग हय । तबतो बिस्तारसें बीसों पदकी जूदी बिधि । गुरुके मुखसे समऊके करे जो गुरुका जोग न हो (तो) बिबेक संयुक्त इस बिधिकों देखके बीस स्थानक तप सेवन करे। बीस स्थानक तवन पढे (वा) सुणे । बीस स्थानकजी की पूजा करावे । अपनी शक्ति माफक बीस बीस ज्ञानोपगरण करावे । देव पदको देव खाते लगावे। ज्ञान पदको झान खाते लगावे । गुरु पदको गुरु महाराजकोदेवे । सब तीर्थो की यात्रा करे । साहमी बछल करे. ॥ इति वीसस्थानक तप विधि समाप्ता॥ ॥ मोदा करंडक तप ॥ उपवास, आयंबिल, नीवी, एकाशना, पुरिमव ए एक उली हुई एसें पांच वारली करनेसें पञ्चीस दिनसे यह तप पुरा करना, इस्मे नमो सिकाणं पदकी वीस नवकारवाली गुणनी. उद्यापनमे एक मब्बेमें नैवेद्य नरके जिनमंदिरमें ढोकना पूजा पढानी. ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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