SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयपरिछेद. २११ ॥ इति सित्तर चारित्र नेदाः॥ ॥ इस रीतसे (७०) नमस्कार करै । (खडा हो के) अन्नथू ससि एणं० ( इत्यादि कहै) (30) लोगस्सका काउसग्ग करिके । एक लोगस्स कहै। (पी) पूर्वोक्त करणी सब करै । इति अष्टम दि. वस विधिः॥ ॥अथ नवम दिवस विधिलि० ॥ __॥(उही णमो तवस्स) इस पदको (२) ह. जार गुणनो करै । तपपदके-उज्वन वर्ण (इसीसें) तंकुलका आंबिल करै । पच्चास नेद तपपदके चिंत्त वके नमस्कार करै ॥ ॥अथ तपपदके (५०) नेदलिः ॥ १ यावत कथिक तपसे नमः। २ इत्वर तपनेद तपसे नमः। ३ वाह्यऊणोदरी तपनेद तपसे नमः। ४ अत्यंतर ऊणोदरी तपनेद तपसे नमः। ५ अव्यतप वृत्तिसंदेप तपनेद तपसे नमः। ६ देत्रतप वृत्तिसंक्षेप तपनेद तपसे नमः। कालतप वृत्तिसंदेप तपनेद तपन्नेद नमः। जनावतप वृत्तिसंक्षेप तपनेद तपसे नमः। ए कायक्लेस तपन्नेद तपसे नमः। १० रसत्याग तपनेद तपसे नमः।११ इंजी कषाय जोग विषयक संलोणता तपसे नमः।
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy