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________________ १६ जैनधर्मसिंधुः पारै पीछे पूर्वोक्त करणी अनुक्रमसें करै ॥ इति द्वितीय दिवस विधिः॥२॥ ॥अथ तृतीय दिवस विधि. वि०॥ ॥ पूर्वोक्त विधिसे प्रातकर्त्तव्य करै श्राचार्यपद पीले वर्ण है (इसीसें ) चिणाकी दालका श्रांबिल करै । ( उँही ही णमो आय रियाणं) इस पदको गु. णणो दोहजार करै । श्राचार्य पदके (३६) गुण याद करके बत्तीस नमस्कार करै। ॥अथ श्राचार्य पदके (३६) गुण लि० ॥ १॥प्रतिरूप गुणसंयुताय श्रीआचार्याय नमः। २ सूर्यवत्तेजस्वी गुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः। ३ युगप्रधानागम संयुताय श्रीश्राचार्याय नमः। ४ मधुरवाक्य गुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः। ५ गांजीय गुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः। ६ धैर्यगुण संयुताय श्रीया । ७ उपदेश गुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः। G अपरिश्रावी गुणसंयुताय श्रीआचा। ए सौम्यप्रकृति गुणसंयुताय श्रीश्रा । १० शीलगुणसंयुताय श्री। ११ अविग्रह गुणसंयुताय श्री० । १२ अविकथक गुणसंयुताय श्रीश्राचार्याय नमः। १३ अचपल गुणसंयुताय श्रीश्रा। १४ प्रसंत वदनगुण संयुताय श्रीश्रा।
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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