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________________ १ए जैनधर्मसिंधु. १ अशोकवृक्षप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरिहंतायनमः। २ पुष्पवृष्टिप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि । ३ दिव्यध्वनि प्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि। ४ चामरयुग प्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि । ५ स्वर्णसिंहासण प्रातिहार्यसंयुताय श्री अरि । ६ नामंगल प्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि । इंसुनिप्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि। ७ बत्नत्रय प्रातिहार्यसंयुताय श्रीअरि । ए ज्ञानातिशय संयुताय श्रीअरि। १० पूजातिशयसंयुताय श्रीअरि । ११ वचनातिशय संयुताय श्रीअरि ।। १२ अपायापगमातिशयसंयुताय श्रीअरि० । ॥ इति छादश अरिहंतगुणाः ॥ ॥ इत्यादि नमस्कार करिके । अन्नत्थू ससियेणं । (कहिके) (१२) बारे लोगस्सनो काउसग्ग करै। एकलो गस्स प्रगट कहै। पीस्वस्थानक जाके। चैत्यवंदन करै पचरकाण पारिकोआंबिल करै। पहले जल पीवे (जब) चैत्यवंदन करिके पीवे।पीछेफेर चैत्यवंदन करिके तिवि हार पच्चरकाण करै गुणणो(२०००) ही णमो अरि हंताणं । इस पदको करै । श्रीपालका चरित्र नवपद महिमा सुणे । पूण पहिर दिन रहणेसें (तीसरीवेर) पांच शक्रस्तवे देव वाद।सामायिकलेके दिन बतेपमिक मणो करै। आरतीके समय दीप धूप कुसम पूजा करै।
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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