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________________ हितीयपरिबेद. १३ नवर कल्याणक अति घणां, एकशोने पंचास ॥ ते 0 कारण ए पर्व महोटुं, करो मौन उपवास ॥१॥ अगियार श्रावक तणी प्रतिमा, कहे ते जिनवर दे व ॥ एकादशी एम अधिक सेवो, वन गजा जिम रेव ॥ चोवीश जिनवर सयल सुखकर, जैसा सुरत रु चंग ॥ जेम गंग निर्मल नीर जेहवं, करो जिन\ रंग ॥२॥ अगीश्रार अंग लखावियें, अगीयार पा गं सार ॥ अगियार कवली वीटणां, ग्वणी पूंजणी सार ॥ चाबखी चंगी विविध रंगी, शास्त्र तणे अनु सार ॥ एकादशी एम उजवो, जेम पामियें नवपार ॥३॥ वर कमलनयणी कमलवयणी, कमल सुको मलकाय ॥तुजदंड चंम अखंड जेहने, समरतां सुख थाय ॥ एकादशी एम मन वशी, गणि हर्ष पंमित शिस ॥शासन देवी विघन निवारो,संघ तणांनिशदीस ॥ अथ शांतिजिन स्तुति ॥ ॥शांति जिणेसर समरियें, जेहनी अचिरा माय ॥ विश्वसेन कुल उपना मृग लंबन पाय ॥ गजपुर नयरीनो धणी, सोवन वरणी काय ॥ धनुष चालिस जस देहमी, वरस लाखनु आय ॥१॥ शांति जिनेसर सोलमा, चक्री पंचम जाणुं ॥ कुंथुनाथ चक्री बग, अर नाथ वखाएं ॥ एत्रिणे चक्री सही, देखी आणंद्रं ॥ संयम लइ मुतें गया, नित्य उठीने वंद ॥२॥ शांति जिनेसर केवली, बेग धर्म प्रकाशे॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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