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________________ हितीयपरिछेद. ११ कीजें, पातकनो परिहार ॥३॥ गजगामिनी का. मिनी, कमल सुकोमल चीर ॥ चकेसरी केसरी, सर स सुगंध शरीर ॥ कर जोमी बीजें हुं प्रणमुं तस पाय ॥ एम लब्धिविजय कहे, पूरो मनोरथ माय ४ ॥अथ पंचमीनी स्तुति ॥ ॥ श्रावण शुदि दिन पंचमी ए, जन्म्या नेम जिणंद तो ॥ श्यामवरण तन शोनतुं ए, मुख शार दको चंद तो ॥ सहस वरस प्रनु श्रायु ए, ब्रह्म चारी नगवंत तो ॥ श्रष्ट करम हेलें हणी ए, पहो ता मुक्ति महंत तो ॥१॥ अष्टापदपर आदि जिन ए,पहोता मुक्ति मोकार तो ॥ वासुपूज्य चंपापुरी ए नेम मुक्ति गिरनार तो ॥ पावापुरी माहे वलि ए श्रीवीरतणुं निर्वाण तो ॥ समेत शिखर विश सिक हुश्रा ए, शिर वहुं तेहनी आण तो ॥२॥ नेमना थानी हुवा ए, नांखे सार वचन्न तो॥जीवदया गु ण वेलमी ए, कीजे तास जतन तो ॥ मृषा न बो लो मानवी ए, चोरी चित्त निवार तो॥ अनंत ती थंकर एम कहे ए, परहरिये परनार तो ॥ ३ ॥ गो मेद नामे यद ललो ए, देवी श्री अंबिका नाम तो॥ शासन सान्निध्य जे करे ए, करे वलि धर्मनां काम तो ॥ तपगड नायक गुण निलो ए, श्रीविज यसैन्य सूरिराय तो ॥ रिखनदास पाय सेवतां ए, सफल करो अवतार तो ॥४॥ इति ॥
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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