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________________ द्वितीयपरिछेद. 299 राज नमो ॥ प्रथम जिनेसर प्रेमे पेखत, सिद्धां सघलां काज नमो ॥ ० ॥ १ ॥ प्रभु पारंगत परम महोदय, अविनाशी कलंक नमो ॥ अजर अमर अद्भुत अतिशय निधि, प्रवचन जलधिमयंक नमो ॥ ० ॥ २ ॥ तिहुश्रण नविगण जब म वंबिय, पूरण देव रसाल नमो ॥ ललि ललि पायनमुं हुं जालें, कर जोमीनें त्रिकाल नमो ॥ ० ॥ ३ ॥ सिद्ध बुद्ध तूं जग जन सन, नय नानंदन देव नमो ॥ सकल सुरासुर नर वर नायक, सारे श्रहो निश सेव नमो ॥ श्र० ॥ ४ ॥ तूं तीर्थं कर सुखकर साहिब, तूं निःकारण बंधु नमो ॥ शर यागत जविने हितवत्सल, तूंही कृपारसासिंधु नमो ० ॥ ५ ॥ केवलज्ञानादर्शे दर्शित, लोकालोकख नाव नमो ॥ नाशित सकल कलंक कलुषगण पु रित उपद्रवजाव नमो ॥ ० ॥ ६ ॥ जगचिंताम णि जगगुरु जगहित, कारक जगजननाथ नमो ॥ घोर पार जवो दधितारण, तूं शिवपुरनो साथ नमो ॥ ० ॥ ७ ॥ अशरण, शरण नीराग निरंजन, निरुपाधिक जगदीश नमो ॥ बोधि दीर्ज अनुपम दाने सर, ज्ञानविमल सूरीश नमो ॥ ० ॥ ८ ॥ ॥ अथ श्रीचोवीश जिननावर्णनु चैत्यवंदन ॥ ॥ पद्मन ने वासुपूज्य दोय राता कहीयें ॥ चंद्रप्रन ने सुविधिनाथ, दो उज्ज्वल लहीयें ॥ १ ॥ २३
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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