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________________ १६६ जैनधर्मसिंधु. वास करे, तेने धन्य, जे त्रण दंम टासवाना त्रण उपवास करे, तेने धन्य, जे राग द्वेष टालवाना बे उपवास करे, तेने धन्य, जे एक उपवास करे, तेने धन्य, आयंबिल करे, तेने धन्य, एकासणुं करे, तेने धन्य, जे एक टाणुं करे, तेने धन्य, जे पूरिमाई करे, तेने धन्य, जे पोरसि करे, तेने धन्य, जे नवकारसि करे, तेने धन्य, जे गंठसीचं मुठ सीजं करे, जे कोश् श्री जिनाज्ञा प्रमाणे चाले ते जीवने धन्य , धन्य धन्य धन्य धन्य धन्य नमो अरिहंताणं ॥ति वरसी तपना कानस्सग्गनो पाठ संपूर्ण ॥ अथ नंदीनो पाठ. जयश्जगजीव जोणी, विप्राण जग गुरु जगाणंदो, जगनादो जगबंधू, जय जगप्पिया मदो जयवं ॥१॥जय सुआणं प्पनवो तिबयराणं अपडिमो जयश, जय गुरुलोगाणं जयश्मदप्पा मदा वीरो॥शानदं सब जगुजो, यगस्स नई जिणस्स वीरस्स, नई सुरा सुर नमं, सियस्स नई धूयरयस्स ॥३॥ गुण नवण गदण सुयरयण, नरिय दंसण विसुक्ष
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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