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________________ १५७ जैनधर्मसिंधु...... लोगा संसप्पओगे परलोगा संसप्पओगे जीवि आ ससंप्पोगे मरणीया संसप्पओगे काम नोगनी वांग कीधी होय, जे कोई दिवस संबं धि दोष लागो होय, तस्स ॥१६॥ - अढारे पापस्थानक लागां होय, ते पालोन पदेद्यं प्राणातिपात ॥१॥बीजुं मृषावाद॥॥ त्रीजं अदत्ता दान ॥ ३॥ चोथु मैथुन ॥ ४ ॥ पांचमुं परिग्रह ॥॥ठं क्रोध ॥६॥ मान ॥७॥ माया॥॥लोनाणा राग ॥२०॥ देष ॥१२॥ कलह ॥१२॥अन्याख्यान ॥१३ ॥ पैशुन्य ॥२४॥परपरिवाद ॥२४॥रतिअरति ॥१६॥ माया मोसो॥२७॥मिथ्या दरसण शैल्य॥१॥ए अढारे पापस्थानक सेव्यां होय, सेवराव्यां होय सेवतांप्रत्ये अनुमोद्यां दोय जे कोइ दिवस सं बंधि दोष लागो होय तस्स मिलामि ७० ॥१७॥ ____ अतिक्रम. व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार मूलगुण उत्तर गुणने विषे जे कोइ दिवस संबं धि दोष लागो होय, तस्स मिबा०॥१७॥ इवं आलोएमि जोमे देवसियो अश्वारो कोकाश्मो वाश्ओ माणसिओ उस्सुतो उ
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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