SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमपरिच्छेद . १३३ त्रीजुं आवश्यक नेचोथुं खमा साथयुं. इदा पोंताने मुखें, संध्या होय तो चनविहार अने सवार होय तो नवकारसी प्रमुखनुं पच्चरकाण मनने जावें धारे, तेथी तपाचार निर्मल याय ॥ पी एक जण उनोथइने इवामि खमास मण पूर्वक इवाका० सं० नगवन् ! चोथा आवश्यक जणी लघु प्रतिचार आलोनं जी. ॥ ॥ चप्रथ लघु प्रतिचार ॥ ॥ प्रथम नवकार कहीने, इवं अरिहंतदेव, सुसाधु गुरु, जिनप्रणीतधर्म, जावतो समकित प्रतिपालुं; व्यतो लौकिक लोकोत्तर देवगत, गुरुगत, पर्वगत मिथ्यात्वविषे जया करूं. ए श्रीसमकित तणा पांच प्रतिचार शोधुं. शंका, कंखा, वितिगिवा, परपाखंमीपरसंसा, परपाखं डी संधु ए पांच प्रतिचार मांदे जे कोई प्रतिचार हुई होय, ते सवि हुं, मने, वचनें कायायै कमिचामि डुक्करं ॥ १ ए बार व्रतमांदे पहेलुं प्राणातिपात विर मण व्रतस्थूल बेंद्रियादिक त्रस जीव निरपराध उपेतकरण संकल्पी करी दावा नियम, आरं
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy