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________________ १५६ जैनधर्मसिंधु. सुयस्स लगवर्ड करेमि का वंदणवतीयाए (इ त्यादि कही ) कानस्सग्ग करे कानस्सग्गमा चौपुहरी रात्रि मांद सातलाख इत्यादि आलोय णचिंतवे(अथवा) आठ नवकार चिंतवे (पबी) कानसग्ग पारी ॥ सिधाणं बुदाणं कही संडा साप्रमार्जनपूर्वक वैसी मुहपती पडिलेह पबैदो वांदणा देई अनहिमि खामि वांदणा वेदीजै तेविधि देवसीनी परे जा णवू पबै सबसवि० ॥ इबा0 न0 ए पद क हवे करी आलोया अतीचारनो प्रायबित मांगे पळे श्वं तस्समिबामि उकळं ॥ पडे जीमणो गोडो चंचो करी तीन नवकार तीन करेमिन बामि पमिकमिजं जोमेराईयो इत्यादि कही वंदितूसूत्र तंनिंदे तंच गरिदामि सूधी कदै ॥ पछै वांदणां देवै । पेने अनुहि कही फर वां दणां वेदेवा पबै आयरिऊन वजाए करेमिन्नं ते श्बा मिगमि कानसग्गं । तस्सुतरी अन्न बु०६लोगस्सनो काउसग्ग अथवा चौवी न वकारनो कानसग्ग करै ।पचै मुंदमै लोगस्स क है पबै मुहपत्ती पमिलद वांदणां देवै सग
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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