SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ जैनधर्मसिंधु. हवी ॥ दोय वांदणा देवे देवसियं आलोएमी० पवें गणेकमणे पडे चौंपुरा दिवसना लघु अतिचार ॥ अढार पापस्थानक आलोई सव सविदेवसिय पडे तीन नवकार तीन करेमिण पने वंदेतूसूत्र कहे पजे वांदणा दोय देवे ॥पने अनुहिम कही फेर २ वांदणां देई॥ आय रि जवझाए करेमि० तस्सुतरीन अन्नबू० दोय लोगस्सनो कानसग करे मुंहमे लोगस्स कहे॥वंदणअन्नपजे एकलोगस्सनो कान सग॥ मुंदडे पुष्करवरदी वट्टे वंदण अन्न एक लोगस्सनो काउसग्ग मुंदडे सिझणं बुझ ०प सुहदेवीयाए करेमि कासग्गअन्नर नवकारनो कानसग्ग करे ॥ सुवर्णसालिनीदे यात्। एक गाथा कहे पडे देत्रदेवीयाए करेमि कानस्सग अन्न० १ नवकारनो कानसग करे पने यासांषेत्रगतासंति गाथा १ कहे १ नव कारगुणी बड़े आवश्य करी मुदपत्ती पडिलेदे दोय वार वांदणा देवे॥श्वामो अणुसध्यिं नमोखमासमणाणं ॥ नमोस्तुवईमानाय तीन गाथा कहे ॥ नमोबणं कही वमोतवन कहे,
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy