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________________ ११४ जैनधर्मसिंधु. गंजइ, उडियसब अणब घब निबार दय करि, उरिअइंदरज सुपासदेव उरिअकरिके सरि॥५॥तुद आणायंने नीमदप्पु घर सुरव र, रकस जक फणिंद विंद चोरानलजलहर। जलथलचारिरउद्दखुद्द पसुजोणि जोश्त्र, श्य तिहअणअविलंघिआण जय पास सुसामिष ॥६॥पबिअ अब अणबदिबन्नत्तिनरनिन्नर, रोमं चंचिअचारुकाय किम्मरनरसुरवर ॥ जसु सेवहि कमकमलजुअल परकालिअकलिमलु, सोजुवणत्तयसामिपास मदमद्दन रिजबलु॥॥ जय जोश्अ मणकमलनसल जय पंजरकुंजर, तिहुअणजणाणंदचंदजुवणत्तयदिणयराज य मश्मेशणि वारिवाद जयजंतु पिआमद, थंन यग्अि पासनाद नादत्तणकुणमह ॥॥ बहु विदवमञवाम सुम वमिन उप्परमहि,मुरकधम्मु कामबकाम नर नियनिय सब दि॥ जं जाय बहु दरिसणब बहु नाम पसिन, सो जो अ मण कमलनसलसुह पास पवन ॥ए॥ जय विप्नल रणणिरदसण थरदरिअ सरीरय, तर लिअ नयणविसम्मसुम्मगग्गिरगिरकरुणय॥ तई
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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